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गुरुवार, 17 जनवरी 2019

मेष लग्न ग्रह उच्च राशि नीच राशि स्‍वग्रह राशि 1 सूर्य,मेष तुला सिंह 2 चन्द्रमा, वृषभ वृश्चिक कर्क 3 मंगल, मकर कर्क मेष, वृश्चिक 4 बुध, कन्या मीन मिथुन, कन्या 5 गुरू, कर्क मकर धनु, मीन 6 शुक्र, मीन कन्या वृषभ, तुला 7 शनि, तुला मेष मकर, कुम्भ 8 राहु, धनु मिथुन 9 केतु मिथुन धनु

मेष लग्न
 
मेष लग्न के जातक देखने में दुबले-पतले अर्थात् ना अधिक मोटे और ना ही अधिक पतलेलेकिन अन्दर से मजबूत एवं कठोर होते हैं। मेष लग्न चर लग्न है अर्थात् चलायमान। ये एक जगह टिककर नहीं बैठ सकते हैं निरन्तर क्रियाशील रहना इनके स्वभाव में होता है। लग्न के स्वामी मंगल होने की वजह से सेनापति की भांति अनुशासनप्रिय होते हैं। इन्हें किसी भी कार्य में बैठे रहना पसंद नहीं होता है।
 
ये एक साथ कई कार्य शुरू करते हैं। इन्हें प्रतीक्षा करना पसंद नहीं होता है इसलिए तुरन्त परिणाम न आने पर काम को बीच में ही छो़डने की प्रवृत्ति रखते हैं और अपने इसी स्वभाव के कारण कोई भी कार्य पूरा नहीं कर पाते हैं। मेष लग्न अग्नि तत्त्व लग्न है इसलिए आपको तेज मसालेदार खाना पसंद होता है।
 
तेज मसालेदार भोजन करने की वजह से आपको पित्त संबंधी समस्याएँ अधिक रहती है। आपको अपने खान-पान में कम मसाले वाला भोजन उपयोग करना चाहिए और पानी अधिक से अधिक पीना चाहिए। मसाले वाला तीखा भोजन करने की वजह से आपको पेट संबंधी समस्या भी रहती है।
अग्नि तत्त्व होने से आपको क्रोध बहुत अधिक आता है लेकिन जितनी शीघ्रता से क्रोध आता है उतनी शीघ्रता से उतर भी जाता है। आपको अपने क्रोध पर नियंत्रण रखने का प्रयास करना चाहिए अन्यथा व्यर्थ में ही आपके विरोधी बनते चले जायेंगे। 
 
मेष लग्न का चिह्न मेढ़ा होता है जिस प्रकार मेढ़ा बिना सोचे-समझे अपने शत्रु पर वार करता है उसी प्रकार मेष लग्न वाले जातक भी बिना सोचेबिना सामने वाले की शक्ति का आंकलन किये कार्य करते हैं। अपने संबंधों में मधुरता बनाये रखने के लिए आपको अपनी वाणी एवं व्यवहार में विनम्रता लानी चाहिए।
 
आपको अपने स्वभाव में धैर्य धारण करना चाहिए। आप अत्यधिक महत्वकांक्षी होते हैं। अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए आप लगातार मेहनत करते हैं। आपको योजना बनाना पसंद होता हैनेतृत्व करना पसंद होता है लेकिन किसी के निर्देशन में कार्य करना पसंद नहीं होता है। मेष लग्न के जातक दिल के साफ होते हैं तथा जो भी कहना होता है उसे सामने ही बोल देते हैं।


वृषभ लग्न
 
वृषभ लग्न के जातकों का छोटा कदलेकिन आकर्षक व्यक्तित्व होता है। स्थिर लग्न होने से इनका स्वभाव स्थिरता लिये हुए होता है। ये जो भी कार्य करते हैं उसे पूरा करके ही हटते हैं। राशि चिह्न बैल होने की वजह से ये अत्यंत मेहनती होते हैं तथा लगातार कार्य करते रहना इनका व्यवहार हैं। आप इनसे प्यार से कुछ भी करा सकते हैं लेकिन जबरदस्ती करने पर ये बैल की भाँतिअड़ियल हो जाते हैंउस स्थिति में इनसे कुछ भी कराना मुश्किल होता है। 
 
ये जिद्दी होते हैंइन्हें अपनी जिद्द को छो़डने का प्रयास करना चाहिए। पृथ्वी तत्त्व होने से सहनशीलता का भाव इनमें कूट-कूट कर भरा होता है। जब तक इनसे सहन होता हैकरते जाते हैं। अधिक सहन करने की वजह से कई बार गंभीर बीमारियों से ग्रस्त भी हो जाते हैं। 
 
अत्यधिक मेहनत करने एवं लगातार बिना रूके काम करने की अपनी आदत की वजह से आप अपने खानपान पर भी ध्यान नहीं देते हैं और आपको गैस से संबंधित रोग हो सकते हैं। लेकिन जब किसी की सहायता करते हैं तो अपनी पूर्व शक्ति लगा देते हैं। काम के साथ आपको अपने खाने-पीने पर भी ध्यान देना चाहिए। लंबे समय तक भूखे ना रहकर बीच-बीच में थो़डा-थो़डा खाना चाहिए।
 
शुक्र के प्रभाव होने से अपने कार्यस्थल पर आप हर आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हैं। आप अपने पहनावे पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। समय के साथ अपने रहन-सहन में आप परिवर्तन करते रहते हैं। योजनाबद्ध तरीके से कार्य करना आपको पसंद होता है।
 
हर वस्तु को नियत स्थान पर रखना,  हाथ में लिया गया प्रत्येक कार्य पूर्ण करना,  प्रत्येक सुन्दर वस्तु की ओर आप आसानी से आकर्षित हो जाते हैं। आपको ये लगता है कि आप सही हैं,  गुस्से में आप यह भी भूल जाते हैं कि सामने वाला भी सही हो सकता है। अपने क्रोध एवं क्रोध की स्थिति में किसी के बारे में बनने वाली अपनी सोच को आपको बदलना चाहिए।

मिथुन लग्न

मिथुन लग्न पर बुध का प्रभाव होता है। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं आपका मस्तिष्क सदैव विचारमान व गतिमान रहता है इसलिए हर समय कुछ न कुछ आपके मस्तिष्क में चलता रहता है। आपके व्यक्तित्व में सुकोमलता और बालसुलभ क्रियायें सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। 

लग्न के स्वामी बुध होने की वजह से कठिन से कठिन काम को भी आप अपनी बुद्धि कौशल से आसान बना लेते हैं। जिन विषयों में जितनी गहराई अधिक होती है उनके प्रति आपका झुकाव उतना ही अधिक होता हैइसलिए गणित जैसे कठिन विषय के प्रति आपका झुकाव अधिक होता है। आपका मजाकिया स्वभाव होता है कई बार लोग आपकी मजाक को आसानी से नहीं समझ पाते हैं और आपसे नाराज तक हो जाते हैं। 
 
मिथुन लग्न के जातक मध्यम कद के होते हैं। शारीरिक श्रम आपके व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं बन जाता है क्योंकि काफी कर्यो का प्रबंधन आप बुद्धि कौशल से सम्पन्न कर लेते हैं। द्विस्वभाव लग्न होने से आपके स्वभाव में भी दोहरापन (वास्तव में लचीलापन) होता है। 
 
समय के अनुसार अपने व्यवहार को बदल लेना अथवा हर परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेना,वातावरण को अपने अनुसार ढाल लेना या स्वयं वातावरण के अनुसार ढल जाना आपके स्वभाव की विशेषता होती है। मिथुन लग्न का चिह्न स्त्री-पुरूष का जो़डाजिसमें पुरूष के हाथ में गदा एवं स्त्री के हाथ में वीणा हैजिससे कभी ये कठोर स्वभाव एवं कभी बिल्कुल कोमल व्यवहार लिये होते हैं।
 
मिथुन लग्न के जातक अकेले नहीं रह सकते हैं। आपको मित्रों के साथ बैठना अच्छा लगता है। आप हर आयु वर्ग के व्यक्ति के साथ मित्रता कर भी लेते हैं और उसे निभा भी लेते हैं। आप हर तरह के माहौल में स्वयं को ढाल लेते हैं। प्रत्येक तरह का भोजन आपको पसंद होता है। आप मिश्रित प्रकृति होने के कारण आपको रोग भी मिश्रित अर्थात् कई प्रकार के ही होते हैं। 
 
आपको खान-पान में विशेष रूप से घर से बाहर के खाने का परहेज करना चाहिए। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के ही कारण आप कई क्षेत्रों में प्रसिद्धि हासिल करते हैं। आपका व्यवहारिक ज्ञान अच्छा होता है। किसी भी व्यक्ति से अपना कोई काम कैसे करवाया जायेयह व्यवहार कुशलता आपको अच्छी तरह से आती है। हर चीज को सीखने एवं पाने की ललक आप मे रहती है। आप खाली नहीं बैठ सकते हैं। हर समय व्यस्त रहना कुछ नया करने की इच्छा आपमें रहती है। आपका हँसमुख स्वभाव आपको हर जगह लोकप्रिय बनाता है।


कर्क लग्न
 
कर्क लग्न पर चन्द्रमा का प्रभाव होने से आप अति संवेदनशील होते हैं। कर्क लग्न जोकि एक जलतत्त्व है इसलिए जिस प्रकार जल अपने लिए रास्ता बना ही लेता है उसी प्रकार कर्क लग्न के व्यक्ति भी अपना कार्य निकाल ही लेते हैं। चर लग्न है इसलिए लगातार कार्य करना आपका स्वभाव होता है। आपको जलीय स्थानों के नजदीक रहना अधिक प्रिय होता है।
 
ठण़्डी जगहों पर रहना एवं ठण्डी वस्तुओं का सेवन आपको अधिक प्रिय होता है। ठण्डी वस्तुओं के अत्यधिक सेवन से आपको कफ संबंधी समस्या अधिक होती है अत: आपको गर्म वस्तुओं का सेवन भी करना चाहिए। कर्क लग्न के जातक जिनके साथ भावनात्मक रूप से जु़ड जाते हैंउनकी सुरक्षा अपनी जिम्मेदारी मान लेते हैं उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं तथा जिनसे शत्रुता हो जाती है उन्हें बर्बाद करने के लिए कोई कसर नहीं छो़डते हैं।
 
लगातार कार्य करना आपका स्वभाव होता हैबिना थके निरन्तर कार्य करना आपके स्वास्थ्य पर भी बुरा असर डालता है। आपको अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना चाहिए। कार्य के घण्टो में से थो़डा समय आराम के लिए भी निकालें। कर्क लग्न के जातक पतले तथा मध्यम कद के होते हैं। जिस प्रकार केक़डा (कर्क राशि का प्रतीक चिह्न) जल एवं भूमि दोनों जगह समायोजन कर लेता है उसी प्रकार कर्क लग्न के व्यक्ति भी हर परिस्थिति में स्वयं को ढाल लेते हैं। 
 
इनकी जीवनशैली ऎश्वर्यपूर्ण होती है। ये अत्यंत धैर्यवान होते हैं कठिन से कठिन समय मे भी घबराते नहीं है। आप अत्यधिक भावनात्मक होते हैं इसलिए आपके निर्णय कई बार गलत भी हो जाते हैं। आपके स्वभाव में कई बार जिद्दीपन आ जाता है। 
 
अपने स्वभाव के इस नकारात्मक पक्ष को छो़डने का प्रयास आपको करना चाहिए। कर्क लग्न वाले जातकों के भाव जब तक बिल्कुल सिर पर नहीं जाते हैंतब तक वो गंभीर नहीं होते हैं लेकिन जब किसी काम को करने की ठान लेंतो उसे करके ही बैठते हैं। इस लग्न में जन्में जातकों के जीवन में अचानक ही परिवर्तन आते हैं।


सिंह लग्न
 
सिंह लग्न के जातक अत्यंत तेजस्वी एवं आत्मविश्वासी होते हैं। अग्नि की ही भांति ऊर्जावान होते हैं किसी भी कार्य को करने से पीछे नहीं हटते हैं जो कार्य प्रारंभ करते हैं उसे पूरा करके ही बैठते हैं। नीतियाँ बनाना एवं उन पर कार्य करना इन्हें पसंद होता है। अनुशासनहीनता इन्हें बर्दाश्त नहीं होती है। जो नियम ये बनाते हैंउन पर स्वयं भी कार्य करते हैं और दूसरों से करवाते भी है। अपना मान सम्मान इन्हें बहुत प्रिय होता है।
 
यदि किसी से कोई वादा करते हैं तो उसे निभाते हैं। ये सब के साथ न तो धुल-मिल नहीं पाते नहीं ये पसंद करते हैं। इन्हें केवल अपने स्तर के व्यक्तियों के साथ ही उठना-बैठना पसंद होता है। स्थिर लग्न होने से इनके स्वभाव एवं व्यवहार में भी स्थिरता होती है। 
 
यह जो भी कहते हैंउस पर अंत तक स्थिर रहते हैं। जिस भी कार्य को ये शुरू करते हैं उससे अंत तक जु़डे रहते हैं। जैसा व्यवहार ये दूसरों के साथ करते हैं,वैसे ही व्यवहार की अपेक्षा अपने लिए भी रखते हैं और ऎसा न होने पर तीखा बोलने से भी पीछे नहीं हटते हैं। सिंह लग्न के स्वामी क्योंकि सूर्य हैंइसलिए इस लग्न के व्यक्ति राजस्वी गुण लिये होते हैं। ऎशोआराम का जीवन पसंद होता है। 
 
कार्य करवाना इन्हें पसंद होता हैस्वयं कार्य करना पसंद नहीं होता है। किसी और के द्वारा किया या कार्य इन्हें पसंद नहीं आता हैचाहे वह कितना ही अच्छा किया गया हो। जल्दी से किसी की बात मानना या उस पर सहमत होना इनके लिए मुश्किल होता है जो इनके संरक्षण में आता हैउसको पूर्ण रूप से सहायता करते हैं। 
 
ये मानसिक और प्रशासनिक कार्य अच्छे से करते हैं शारीरिक कार्य करना इनको पसंद नहीं होता है। सिंह लग्न के व्यक्ति जिनसे प्यार अथवा मित्रता करते हैं उस पर केवल अपना ही अधिकार समझते हैं और ये ईर्ष्या की हद तक होता है। 
 
सिंह लग्न के जातक मध्यम कद एवं संतुलित व्यक्तित्व के व्यक्ति होते हैं। इनका शारीरिक गठन संतुलन लिये हुए होता है। ये दयालु प्रवृत्ति के होते हैं,सबके लिए समान व्यवहार इनके मन में होता है। ये अपनी परम्पराओं से बहुत अधिक जु़डे होते हैं। उन्हें निभाना इनके स्वभाव में होता है।
 
अत्यधिक क्रोध करना एवं तीखा राजसी भोजना अधिक करना आपकी सेहत के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकता है। अपने खान-पान पर एवं क्रोध पर नियंत्रण रखें। आपको पित्त से संबंधित परेशानी हो सकती है। पानी का सेवन अधिक करें। अपने राजसी एवं ऎश्वर्यशाली जीवनशैली पर नियंत्रण रखें। अति किसी भी चीज की हानिकारक होती है।
कन्या लग्न
 
कन्या लग्न में उत्पन्न जातक मध्यम कद के होते हैं। लग्न पर बुध का प्रभाव होने से आप अत्यंत बुद्धिमान होते हैं। आपका व्यक्तित्व ऎसा होता है कि कोई भी सहजता से आपकी ओर आकर्षित हो जाता है। आपका मस्तिष्क अत्यंत रचनात्मक होता है। नित नये विचारों को जन्म देना एवं उस पर कार्य करना आपका स्वभाव है। 
 
पृथ्वी तत्त्व होने से जिस प्रकार पृथ्वी सभी को धारण करती है उसी प्रकार आपके अन्दर भी सहनशीलता कूट-कूट कर भरी होती है। आप जब तक सहा जाये,सहते हैं और यही हर बात को सहन करने की आपकी आदत गंभीर रोगों को जन्म देती है। वायु प्रकृति होने से आप स्वयं को हर परिस्थिति में ढाल लेते हैं। कितनी भी कठिन समस्या हो आप अपना मानसिक संतुलन बनाये रखते हैं तथा समस्याओं से घबराते नहीं है। आप सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को खुश रखने का प्रयास करते हैं जो किसी के लिए भी संभव नहीं है।
 
आप बिल्कुल साफ दिल के व्यक्ति है। आप छल-कपट नहीं जानते हैंलेकिन किसी कार्य को करने के लिए जिस रणनीति की आवश्यकता है उसका इस्तेमाल आप अवश्य करते हैं। आप स्वयं से जु़डे प्रत्येक व्यक्ति से स्त्रेह करते हैं। प्रत्येक कार्य की लाभ-हानि सोचकर ही आप उस पर कार्य करते हैं। आपका आचरण शुद्ध एवं साफ होता है। किसी के भी प्रति अपने मन में कोई गलत बात नहीं रखते हैं। सभी को माफ करने का स्वभावविपरीत परिस्थितियों में धैर्य रखना एवं समस्याओं का समाधान निकालना की क्षमता आपको विशिष्ठ व्यक्तित्व बनाता है।
 
आप अपनी समस्या सब को नहीं बताते हैं तथा कितनी भी ब़डी समस्या हो आपको देखकर नहीं लगता है कि आप परेशानी में है। सभी प्रकार का भोजन आपको पसंद होता है। जीवन के एक हिस्से में आप सब कुछ नया खाना पसंद करते हैंलेकिन दूसरे हिस्से में आप अपने खान-पान को लेकर अत्यंत जागरूक हो जाते हैं और अपनी सेहत का ध्यान रखते हुये ही खान-पान लेते हैं। आपको गीत-संगीत का शौक होता हैजिसे पूरा करने के लिए आप अपने घर पर पूर्ण व्यवस्था रखते हैं।
 
ये जरूरत प़डने पर सबकी मदद करते हैं। हर संभव सहायता करने के लिए ये तैयार रहते हैं। द्विस्वभाव लग्न होने से कभी तो बहुत भावुक होते हैं तथा कभी इतने कठोर हो जाते हैं कि दूसरे लोग आश्चर्य में प़ड जाते हैं। ये सभी के लिए बहुत करते हैंलेकिन बदले में उचित व्यवहार नहीं मिलने पर उदास एवं दु:खी हो जाते हैं।
 
आपके स्वभाव में अत्यंत कोमलता एवं दूसरों के लिए ममता होती हैलेकिन स्वभाव की यही अत्यधिक कोमलता आपके व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष भी बन जाता हैजिसका अन्य लोग सद्पयोग करते हैं। हर कार्य को समय से करनाप्रत्येक वस्तु को उसके सही स्थान पर ही रखना इनका स्वभाव होता है। लग्नेश बुध के कारण भाषा पर अच्छी पक़ड एवं वाणी की कुशलता तथा किसी भी बात का तर्कपूर्ण तथ्य ये चाहते हैं। किसी भी बात के ठोस तर्क के बिना ये उसे स्वीकार नहीं करते हैं। शुरू में सब कुछ सहन करना और एक दिन अचानक क्रोधित होना आपको और सामने वाले दोनों के लिए घातक होता है इसलिए समस्याओं को साथ के साथ खत्म करते चलने की अपनी आदत बनाइयें।

तुला लग्न
 
तुला लग्न का स्वामी शुक्र होने के कारण व्यक्ति के व्यक्तित्व में शुक्र का प्रभाव दिखाई देता हैं। इनका ब़डा चेहरासुन्दर और विशाल आँखें,घुंघराले बाल,मध्यम कद और सामान्य शरीर होता है। इनके चेहरे पर एक विशेष आकर्षण होता हैजिस कारण लोग इनकी ओर खींचे चले जाते हैं। 
 
इनका स्वभाव सौम्यता लिये होता है क्योंकि उनको स्वभाव में सब कुछ संतुलित करके चलने की आदत विद्यमान होती है। परन्तु कभी-कभी ये जितने सौम्य होते हैंजरूरत प़डने पर उतने ही कठोर भी बन जाते हैं। ऎसे व्यक्ति व्यवहार पसंद होते हैं और सबको साथ लेकर चलने की प्रवृत्ति होने के कारण सबके साथ एक समान व्यवहार करते हैं।
 
ऎसे व्यक्ति को भोग विलास की वस्तुओं का उपभोग करना और खरीदना ज्यादा पसंद होता है। नई टेक्नोलॉजी इन्हें पसंद होती है। ये व्यक्ति नये चिन्तन व परीक्षण करने वाले (क्रियटिव) होते हैं और संगीत,गायननृत्यएक्टिंग आदि चीजें पसंद करते हैं और ये गुण भी इनमें विद्यमान रहते हैं। ऎसे व्यक्ति अपनी साज-सज्जा और कप़डों पर विशेष रूप से ध्यान रखते हैं। 
 
जिस प्रकार वायु होती है कि एहसास कराया और निकल गई उसी प्रकार ऎसे व्यक्ति अपना काम निकाल कर कब चले जाते हैंपता ही नहीं चलता। ऎसे व्यक्ति अच्छा खाने और अच्छा पहनने के शौकीन होते हैं।
 
इन्हें वात संबंधी पेरशानी अधिक रहती है। तुला लग्न के साथ-साथ अगर शुक्र बलवान हो तो इनके काम संबंधी बातें बढ़ जाती हैं तो ऎसे व्यक्ति को अपनी कार्य प्रणाली में पेंटिग्ससंगीतनृत्य आदि क्रेटिविटी को भी शामिल कर लेना चाहिए। ऎसे व्यक्तियों के ऑफिस में इंटीरियर बहुत अच्छा देखने को मिलता है।
 
ऎसे व्यक्तियों की फ्रैण्डलिस्ट में महिला मित्रों की संख्या अधिक होती है। ऎसे व्यक्ति बहुत जल्दी ही हर माहौल में समझौता कर लेते हैंचाहे वो थो़डा आधुनिक हो या पारम्परिक। हमेशा इनका अलग ही रूप देखने को मिलता है। ऎस व्यक्तियों मे हाजिर जवाब क्षमता अद्भूत होती है और पहनावा भी अच्छा होता है। इनके अन्दर राजाओं की तरह रहन-सहन,खान-पान वाले गुण पाये जाते हैं। ऎसे व्यक्ति अच्छे बिजनसमैन साबित होते हैं। 

ऎसे व्यक्ति एक जगह टिक कर नहीं बैठ सकते। इन्हें हमेशा किसी ना किसी काम की आवश्यकता होती है,नहीं तो इनका समय अपने शौक को पूरा करने में व्यतीत हो जाता है। ऎसे व्यक्ति आदर्शवादी होते हैं और साहित्यप्रिय होने के कारण इनकी लेखन क्षमता भी अच्छी होती है। इनका वायु तत्त्व होने के कारण ये लोग अक्सर योजनाएं बनाते हुए मिल जाते हैं परन्तु उन पर क्रियान्वयन नहीं कर पाते।


वृश्चिक लग्न
इनके व्यक्तित्व पर मंगल का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। ये लम्बे और पतले होते हैं। स्वभाव में उग्रता होने के कारण नेतृत्व शक्ति अच्छी होती है परन्तु स्थिर स्वभाव होने के कारण जीवन में स्थिरता रहती है। हर काम को टिक कर करते हैं। जल तत्त्व होने के कारण जिस तरह जल कभी बहुत शान्त और कभी उसमें उग्रता आने पर सब-कुछ तहस-नहस कर देता है वहीं बातें इनमें भी पायी जाती हैं। इसलिए इन्हें अपने क्रोध पर नियंत्रण बनाये रखना चाहिए क्योंकि ऎसे में अक्सर ये लोग अपना ही नुकसान कर बैठते हैं। 
बिच्छु का चिह्न होने के कारण जिस तरह बिच्छु पीछे से डंक मारता है उसी प्रकार ऎसे व्यक्ति जब किसी बात पर रिएक्ट करना होता है तो साथ के साथ न करके बाद में उस बात का बदला अवश्य लेते हैंजो कभी-कभी खतरनाक साबित हो जाता है। ऎसे व्यक्ति बहुत जल्दी घुल-मिल जाते हैं और सभी के बीच में अपनी जगह बना लेते हैं। ऎसे व्यक्तियों की याददाश्त बहुत अच्छी होती है और कुछ भी भूलते नहीं है। ऎसे व्यक्तियों में सहन शक्ति बहुत होती है। ऎसे व्यक्तियों को चटपटा खाना पसंद होता है। परन्तु इन्हें तीखा नहीं खाना चाहिये अन्यथा शरीर में पित प्रकृति बढ़ जाने से परेशानी उठानी प़ड सकती है।
इनके स्वभाव में क्रोध रहता है परन्तु दिल के नरम होते हैं। इन्हें मैनेजमेंट पसंद होता है। अनुशासनहीनता इन्हें पसंद नहीं होती हैन तो ये कर पाते हैं और ना ही सहन कर पाते हैं। इनमें उदारता का गुण भी मिलता है। ये चंचल मस्तिष्क वाले तथा अधिक भावुक प्रकृति के होते हैंजिस कारण इन्हें छोटी-छोटी बातों का बुरा लग जाता है। इन्हें अपनी भावनाओं पर नियंत्रण बनाये रखना चाहिए और भोजन समय पर करना चाहिए। ये आराम पसंद होते हैं।

परन्तु अगर मैनेजमेंट इनके हाथों में हो तो उसे बखूबी निभाते हैं। ये लोग दृढ़ निश्चयी होते हैं जिस कारण अपने निर्णय पर टिके रहते हैं। कभी-कभी वह प्रकृति नुकसानदेय साबित होता है क्योंकि ये लोग अपने गलत निर्णयों पर भी स्थिर रहते हैं। इन्हें चाहिए कि जब कोई प्रिय या वरिष्ठ साथी/रिश्तेदार समझाएं तो अपने निर्णयों का पुनर्विलोकन चाहिए। ये लोग योजनाबद्ध तरीके से कार्य करते हैंचाहे उसके लिए इन्हें कितना भी इंतजार करना प़डे। इनमें धैर्य और संयम की प्रधानता होती है।


धनु लग्न
 
इनके व्यक्तित्व में गुरू का प्रभाव देखने को मिलता हैजिस कारण ये लोग आस्तिक और दर्शन शास्त्र में रूचि रखते हैं। इनकी छाती पुष्ठ और ऊंची है और ब़डा शरीर होने के साथ-साथ कद सामान्य होता है। इनकी कफ विकृत्ति होने के कारण इन पर मौसम के परिवर्तन का बहुत जल्दी प्रभाव प़डता हैजिसके लिए इन्हें सादा पानी और आयुर्वेदिक दवाइयों का अधिक प्रयोग करना चाहिए। ऎसे व्यक्तियों की आध्यात्म और ज्योतिष के प्रति रूचि अधिक होती है। 
 
ऎसे व्यक्ति बुद्धिमान होते हैं। ऎसे व्यक्ति सबसे श्रेष्ठ होते हैं और बहुत ज्ञाता होते हैंलेकिन अगर गुरू बहुत बलवान हो जाये तो ऎसे व्यक्तियों में अपने ज्ञान को लेकर थो़डा अहंकार भी आ जाता है और वह अपने ज्ञान का बखान करने लगते हैं।
 
ऎसे व्यक्ति अपनी बातों में गंभीरता लिये होते हैं। धनीसम्मानित और समाज में प्रतिष्ठित होते हैं। ये लोग अच्छे सलाहकार साबित होते हैंपरन्तु बिना मांगे किसी को सलाह देने से बचें अन्यथा आलोचना के पात्र बन सकते हैं। इन लोगों की वित्त प्रबंधन/सलाह अच्छी होती है। ये लोग पैसों का हिसाब-किताब भलीभांति रख पाते हैं। ऎसे व्यक्तियों में लगातार अपने लक्ष्य की ओर केन्द्रित रहते हैं और जब तक उसको प्राप्त नहीं कर लेतेतब तक शान्ति से नहीं बैठते हैं। 
 
ऎसे व्यक्ति हमेशा प्रसन्नचित्त अवस्था में रहते हैं। ऎसे व्यक्तियों की ज्यादातर रूचि अपने पारम्परिक व्यवसायों को आगे बढ़ाने में ही रहती है। इस गुण के कारण कभी-कभी थो़डे पुराने विचार व्यक्तित्व में मुख्य रूप से केन्द्रित होने लगते हैं। इनमें दूरदर्शिता का गुण भी देखा जाता है जिस कारण इनके कार्यो में हानि की मात्रा में भी कमी आती है। ये लोग ईश्वरप्रिय होने के कारण गलत कार्यो से दूरी बनाये रखते हैं और कभी-कभी चिन्तित भी हो जाते हैं।
 
ये लोग आदर्शवादी होने के कारण उत्साही रहते हैं। इन लोगों में छल-कपट की भावना नहीं होती और कभी इनके साथ ऎसा होने पर ये लोग काफी समय तक उस बारे में सोचते रहते हैंतो इन्हें अपनी इस आदत का बदलने का प्रयास करना चाहिए। इन लोगों को मीठा अधिक पसंद होता है जिस कारण ये थो़डे मोटे होते हैं और इन्हें मीठे का सेवन कम करना चाहिए। क्योंकि इनमें डायबिटिज होने की भी संभावना बनी रहती है। 

कभी-कभी अन्य लोग इन्हें दूसरों के खिलाफ भ़डकाने का प्रयास करते हैंपरन्तु ये लोग अपनी सूझ-बूझ और समझदारी का परिचय देते हुए उन बातों पर गौर नहीं करते। ये लोग ईमानदार होते हैं। ये लोग खजांची होते हैं। धन संयम/प्रबंधन (वर्तमान में वित्तीय प्रबंधक या सलाहकार) की कला से ओतप्रोत रहते हैं।


मकर लग्न
 
इनके व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई प़डता है। इनकी आँखें गहरी और सुन्दर होती है। इनका कद लम्बा परन्तु शरीर से ये पतले होते हैं। मेहनती होते हैं,इसलिए बिना रूके निरन्तर कार्य करते रहते हैंजिस कारण इनके किये हुए कार्यो में गलतियों की संभावना कम रहती है। ये लोग जितने मेहनती होते हैंकभी-कभी उतने ही आलसी भी हो जाते हैं। 
 
ऎसे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी और संयमी होते हैं। जीवन से आने वाली बाधाओं से घबराते नहीं हैंबल्कि उनका डटकर मुकाबला करते हैं। अगर ये लोग बदला लेने पर आ जाये तो पीछे नहीं हटते। दूसरों की मदद करने वाले होते हैं। ये लोग हँसमुख होते हैं। 
 
ये लोग खर्चीलें होते हैंइन्हें धन बचाने की आदत शुरू से करनी चाहिए। ये लोग कम समय में किसी भी परिस्थिति में अपने का ढालने में दक्ष होते हैं। इनके जीवन में बहुत सारी इच्छाएँ होती हैं परन्तु इनकी सफलता धीरे-धीरे मिलती है। इनमें झुककर चलने की आदत होती हैये लोग अपनी आँखें नीची करके चलते हैं। इनका सिर ब़डा और नाक लम्बी होती है।
 
ये लोग जितने समझदार दिखते हैंउससे ज्यादा समझदार होते हैं। ऎसे व्यक्ति गलत बातें सहन नहीं कर पाते चाहे उस विरोध में अकेले ही रह जाये। ऎसा करना कभी-कभी घातक सिद्ध होता है। इसलिए अपने आप संयम बनाये रखें और ज्यादा क्रोध ना करें। ऎसे व्यक्ति अपनी समझदारी और सूझ-बूझ का परिचय देते हुए ब़डी ही आसानी से अपना कार्य करवा लेते हैं। 
 
हर विषय में इनकी रूचि रहती है और हर क्षेत्र में सफलता पाना चाहे हैं और अपनी मेहनत और लगन से सफलता हासिल कर भी लेते हैं। इनको न्याय पसंद होता है और कभी किसी के साथ धोखा नहीं करते। ऎसे व्यक्ति बहुत जल्दी असफलता मिलने पर निराश हो जाते हैं परन्तु थो़डी देर अकेले समय बिताने पर सोच-विचार करके निराशा से बाहर भी आ जाते हैं और अपने कार्यो में जुट जाते हैं। ऎसे व्यक्ति फिजूल की बातें में अपना वक्त जाया नहीं करते और अपने भविष्य के बारे में सोचते हैं।
 
कभी-कभी आलस्य आने पर ये लोग अपना पूरा-पूरा दिन तक खराब कर देते हैं और फिर इन्हें इस बात का अफसोस होता है। इन्हें अपने आलस्य को छो़डकर कार्यो में जुट जाना चाहिए। ये लोग परोपकारी होते हैं और अनुशासन पसंद करते हैं। अपने सिद्धान्तों पर जीतेे हैं और लोगों से भी वही उम्मीद करते हैं अन्यथा दण्ड देने से भी पीछे नहीं हटते हैं। इन्हें अपना एकाधिकार पसंद होता है इसलिये ऎसे व्यक्तियों के ज्यादा मित्रगण नहीं होते क्योंकि ये किसी पर विश्वास नहीं कर पाते हैं।


कुंभ लग्न
 
कुंभ लग्न के व्यक्तित्व पर शनि का प्रभाव दिखाई प़डता है। ऎसे व्यक्ति लम्बेपतले,सुन्दर और आकर्षित दिखते हैं। कमर थो़डी-सी झुकी हुई या हल्का सा झुककर चलन इनकी आदत में शुमार होता है। इनकी आँखें गहरी होती हैं और नीचे की ओर देखकर ही चलते हैं। ऎसे व्यक्ति दिल के साफ और महत्त्वकांक्षी होते हैं। अपने कार्यो में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं करते। 
 
ऎसे व्यक्ति परोपकारी और उदार होते हैं। ऎसे व्यक्ति चि़डचि़डे होते हैं और समूह के साथ कार्य करना अच्छा लगता है इसलिए उनके मित्र भी अधिक होते हैं। इन्हें लोगों को साथ लेकर चलना अच्छा लगता है।
 
परन्तु ये अपने द्वारा किये हुए कार्यो का श्रेय लेने से बचते हैं और हमेशा पीछे रहकर ही कार्य करना पसंद होता है। ये लोग थो़डे शर्मीले होते हैं इसलिए भी़ड में आकर अपनी बात नहीं कह पाते। इन्हें खुलकर अपनी बात कहने का प्रयास करना चाहिए। ये जितने अच्छे लेखक साबित होते हैंउतना वाक्-कौशल नहीं होते हैंइन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आ जाता हैपरन्तु जितनी जल्दी आता हैउतनी ही जल्दी शान्त भी हो जाता है। ऎसे व्यक्तियों की साहित्य में रूचि होती है और अच्छे साहित्यकार के रूप में भी सामने आते हैं। 
 
इन्हें अपने व्यवहार में थो़डा-सा परिवर्तन करना चाहिए। दूसरों की बातें सुनना और अपनी बातों को खुलकर बोलने की आदत डालनी चाहिए। ऎसे व्यक्ति कठोर परिश्रमी होती हैं परन्तु कभी-कभी आलसी भी हो जाते हैं। इन्हें आलस्य को त्यागकर कार्यो में लगे रहना चाहिए।
 
ऎसे व्यक्ति विषयों की गहराई मे जाकर सोचते हैं,परन्तु इनकी सोच और लोगों की सोच से भिन्न होती है इसलिए लोग इनकी बातों को आसानी से समझ नहीं पाते। ऎसे व्यक्ति आध्यात्म के प्रति रूचि रखते हैं और इनकी दर्शन शास्त्र में भी विशेष रूप से रूचि होती है और अपनी दिनचर्या में भी उसे शामिल करते हैं। 

ऎसे व्यक्ति बहुत धीरे-धीरे सोच समझकर कार्य करने वाले होते हैं और संघर्षशील होते हैं। ऎसे व्यक्ति में सबसे अलग व्यवहार और संयमशील होने की आदत होती है। कभी-कभी इनका स्वाभिमान अहंकार में परिवर्तित होने लगता है। इसके लिए इन्हें हमेशा अपन स्वाभिमान को महत्त्व नहीं देना चाहिए। कभी-कभी दूसरों की खुशी का भी ध्यान रखकर कार्य कर लेना चाहिए।


मीन लग्न
 
मीन लग्न वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व गुरू के समान होता है। मध्यम ऊंचाईगोल और सुन्दर आँखें और थो़डे मोटे होते हैं। ऎसे व्यक्ति थो़डे से जिद्दीधार्मिक और संयमी होते हैं। गुरू के समान आदर और सम्मान पाने वाले होते हैं। बहुत जल्दी लोगों के बीच में अपनी जगह बना लेते हैं। चेहरे पर एक तेज होता है। ऎसे व्यक्ति अच्छे वक्ता,गुरू और सलाहकार साबित होते हैं। थो़डे से पारम्परिक होते हैं अत: आसानी से अपनी ज़डों से दूर नहीं जा पाते।
 
इन्हें आसानी से गुस्सा नहीं आता परन्तु जब आता है तो कोई भी नहीं बचा पाता। ऎसे व्यक्ति गंभीर होते हैं और सभी बातें भूल सकते हैं परन्तु अपनी परम्परा और सिद्धान्तों को नहीं भूल सकते। धर्म के विरूद्ध जाकर ना तो कुछ करते है और ना ही करने देते हैं,महत्वकांक्षी होते हैं। इन्हें स्वतंत्र रहना पसंद होता है,परन्तु अपने से ब़डों द्वारा कहीं गई बातें पर अमल करते हैं। 
 
थो़डे से कंजूस होते हैंपरन्तु अपने ऊपर खर्चा करने से पीछे नहीं हटते। आत्मविश्वासी होते हैं और अपने आत्मविश्वास के कारण ही सफलता प्राप्त करते हैं और सम्मान पाते हैं। धार्मिक ग्रन्थों और साहित्य के प्रति इनकी रूचि होती है और अच्छे गुरू साबित होते हैं। अक्सर लोग अपनी परेशानी लेकर इन लोगों के पास आते हैं और इनसे सलाह पाकर खुश भी होते हैं। धार्मिक कार्यो में धन खर्च करने से पीछे नहीं हटते और धन संचय करने की आदत भी इनमें देखी जाती है।
 
अपने कार्यो को करने में दक्ष और दृढ़ निश्चयी होते हैं। इसी कारण कार्यो को समय से पहले कर लेना इनकी विशेषता होती है। ये सम्मान करना बखूबी जानते हैं। ऎसे व्यक्ति अपनी उम्र से ब़डी-ब़डी अर्थात् परिपक्व बातें करते हैं और इन्हें सुनना अच्छा लगता है। इनकी कार्यप्रणाली सादी और सरल होती है परन्तु ये लोक अक्सर ज्ञान बाँटते हुए दिखाई देते हैं।
 
ये लोग गलती करने पर सजा भी देते हैं और कभी-कभी नम्र और कभी-कभी कठोर भी बन जाते हैं। इनका मुख्य उद्देश्य धर्म के प्रति ज्ञान अर्जित करना और बाँटना होता हैचाहे फिर वह इसके लिए लोगों को डराना ही क्यों ना प़डे। इन्हें समझना थो़डा-सा मुश्किल होता है। इन्हें अपनी सोच दूसरों पर नहीं थोपनी चाहिए और उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए। इससे लोग उनका ज्यादा सम्मान करेंगे और लोग खुलकर उनसे अपनी बातें कह पायेंगे।





सूर्य के उपाय चन्द्रमा के उपाय मंगल के उपाय बुध के उपाय बृहस्पति के उपाय शुक्र के उपाय शनि के उपाय राहू  के उपाय केतु के उपाय

सूर्य के उपाय



दान :-
    गाय का दान अगर बछड़े समेत
    गुड़, सोना, तांबा और गेहूं
    सूर्य से सम्बन्धित रत्न का दान
 
 दान के विषय में शास्त्र कहता है कि दान का फल उत्तम तभी होता है जब यह शुभ समय में सुपात्र को दिया जाए। सूर्य से सम्बन्धित वस्तुओं का दान रविवार के दिन दोपहर में ४० से ५० वर्ष के व्यक्ति को देना चाहिए. सूर्य ग्रह की शांति के लिए रविवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गेहुं और गुड़ मिलाकर खिलाना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को गुड़ का खीर खिलाने से भी सूर्य ग्रह के विपरीत प्रभाव में कमी आती है. अगर आपकी कुण्डली में सूर्य कमज़ोर है तो आपको अपने पिता एवं अन्य बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए इससे सूर्य देव प्रसन्न होते हैं. प्रात: उठकर सूर्य नमस्कार करने से भी सूर्य की विपरीत दशा से आपको राहत मिल सकती है.सूर्य को बली बनाने के लिए व्यक्ति को प्रातःकाल सूर्योदय के समय उठकर लाल पुष्प वाले पौधों एवं वृक्षों को जल से सींचना चाहिए।

    रात्रि में ताँबे के पात्र में जल भरकर सिरहाने रख दें तथा दूसरे दिन प्रातःकाल उसे पीना चाहिए।
    ताँबे का कड़ा दाहिने हाथ में धारण किया जा सकता है।
    लाल गाय को रविवार के दिन दोपहर के समय दोनों हाथों में गेहूँ भरकर खिलाने चाहिए। गेहूँ को जमीन पर नहीं डालना चाहिए।
    किसी भी महत्त्वपूर्ण कार्य पर जाते समय घर से मीठी वस्तु खाकर निकलना चाहिए।
    हाथ में मोली (कलावा) छः बार लपेटकर बाँधना चाहिए।
    लाल चन्दन को घिसकर स्नान के जल में डालना चाहिए।
    सूर्य के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु रविवार का दिन, सूर्य के नक्षत्र (कृत्तिका, उत्तरा-फाल्गुनी तथा उत्तराषाढ़ा) तथा सूर्य की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें :-

आपका सूर्य कमज़ोर अथवा नीच का होकर आपको परेशान कर रहा है अथवा किसी कारण सूर्य की दशा सही नहीं चल रही है तो आपको गेहूं और गुड़ का सेवन नहीं करना चाहिए. इसके अलावा आपको इस समय तांबा धारण नहीं करना चाहिए अन्यथा इससे सम्बन्धित क्षेत्र में आपको और भी परेशानी महसूस हो सकती है.


चन्द्रमा के उपाय

दान :-

चन्द्रमा के नीच अथवा मंद होने पर शंख का दान करना उत्तम होता है. इसके अलावा सफेद वस्त्र, चांदी, चावल, भात एवं दूध का दान भी पीड़ित चन्द्रमा वाले व्यक्ति के लिए लाभदायक होता है. जल दान अर्थात प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाना से भी चन्द्रमा की विपरीत दशा में सुधार होता है. अगर आपका चन्द्रमा पीड़ित है तो आपको चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न दान करना चाहिए. चन्दमा से सम्बन्धित वस्तुओं का दान करते समय ध्यान रखें कि दिन सोमवार हो और संध्या काल हो. ज्योतिषशास्त्र में चन्द्रमा से सम्बन्धित वस्तुओं के दान के लिए महिलाओं को सुपात्र बताया गया है अत: दान किसी महिला को दें. आपका चन्द्रमा कमज़ोर है तो आपको सोमवार के दिन व्रत करना चाहिए. गाय को गूंथा हुआ आटा खिलाना चाहिए तथा कौए को भात और चीनी मिलाकर देना चाहिए. किसी ब्राह्मण अथवा गरीब व्यक्ति को दूध में बना हुआ खीर खिलाना चाहिए. सेवा धर्म से भी चन्द्रमा की दशा में सुधार संभव है. सेवा धर्म से आप चन्द्रमा की दशा में सुधार करना चाहते है तो इसके लिए आपको माता और माता समान महिला एवं वृद्ध महिलाओं की सेवा करनी चाहिए.कुछ मुख्य बिन्दु निम्न है-

    व्यक्ति को देर रात्रि तक नहीं जागना चाहिए। रात्रि के समय घूमने-फिरने तथा यात्रा से बचना चाहिए। रात्रि में ऐसे स्थान पर सोना चाहिए जहाँ पर चन्द्रमा की रोशनी आती हो।
    ऐसे व्यक्ति के घर में दूषित जल का संग्रह नहीं होना चाहिए।
    वर्षा का पानी काँच की बोतल में भरकर घर में रखना चाहिए।
    वर्ष में एक बार किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान अवश्य करना चाहिए।
    सोमवार के दिन मीठा दूध नहीं पीना चाहिए।
    सफेद सुगंधित पुष्प वाले पौधे घर में लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।

क्या न करें :-

ज्योतिषशास्त्र में जो उपाय बताए गये हैं उसके अनुसार चन्द्रमा कमज़ोर अथवा पीड़ित होने पर व्यक्ति को प्रतिदिन दूध नहीं पीना चाहिए. स्वेत वस्त्र धारण नहीं करना चाहिए. सुगंध नहीं लगाना चाहिए और चन्द्रमा से सम्बन्धित रत्न नहीं पहनना चाहिए.



मंगल के उपाय

पीड़ित व्यक्ति को लाल रंग का बैल दान करना चाहिए. लाल रंग का वस्त्र, सोना, तांबा, मसूर दाल, बताशा, मीठी रोटी का दान देना चाहिए. मंगल से सम्बन्धित रत्न दान देने से भी पीड़ित मंगल के दुष्प्रभाव में कमी आती है. मंगल ग्रह की दशा में सुधार हेतु दान देने के लिए मंगलवार का दिन और दोपहर का समय सबसे उपयुक्त होता है. जिनका मंगल पीड़ित है उन्हें मंगलवार के दिन व्रत करना चाहिए और ब्राह्मण अथवा किसी गरीब व्यक्ति को भर पेट भोजन कराना चाहिए. मंगल पीड़ित व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 10 से 15 मिनट ध्यान करना उत्तम रहता है. मंगल पीड़ित व्यक्ति में धैर्य की कमी होती है अत: धैर्य बनाये रखने का अभ्यास करना चाहिए एवं छोटे भाई बहनों का ख्याल रखना चाहिए.

    लाल कपड़े में सौंफ बाँधकर अपने शयनकक्ष में रखनी चाहिए।
    ऐसा व्यक्ति जब भी अपना घर बनवाये तो उसे घर में लाल पत्थर अवश्य लगवाना चाहिए।
    बन्धुजनों को मिष्ठान्न का सेवन कराने से भी मंगल शुभ बनता है।
    लाल वस्त्र ले कर उसमें दो मुठ्ठी मसूर की दाल बाँधकर मंगलवार के दिन किसी भिखारी को दान करनी चाहिए।
    मंगलवार के दिन हनुमानजी के चरण से सिन्दूर ले कर उसका टीका माथे पर लगाना चाहिए।
    बंदरों को गुड़ और चने खिलाने चाहिए।
    अपने घर में लाल पुष्प वाले पौधे या वृक्ष लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
    मंगल के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु मंगलवार का दिन, मंगल के नक्षत्र (मृगशिरा, चित्रा, धनिष्ठा) तथा मंगल की होरा में अधिक शुभ होते हैं।


क्या न करें :-

आपका मंगल अगर पीड़ित है तो आपको अपने क्रोध नहीं करना चाहिए. अपने आप पर नियंत्रण नहीं खोना चाहिए. किसी भी चीज़ में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए और भौतिकता में लिप्त नहीं होना चाहिए



बुध के उपाय

बुध की शांति के लिए स्वर्ण का दान करना चाहिए. हरा वस्त्र, हरी सब्जी, मूंग का दाल एवं हरे रंग के वस्तुओं का दान उत्तम कहा जाता है. हरे रंग की चूड़ी और वस्त्र का दान किन्नरो को देना भी इस ग्रह दशा में श्रेष्ठ होता है. बुध ग्रह से सम्बन्धित वस्तुओं का दान भी ग्रह की पीड़ा में कमी ला सकती है. इन वस्तुओं के दान के लिए ज्योतिषशास्त्र में बुधवार के दिन दोपहर का समय उपयुक्त माना गया है.
बुध की दशा में सुधार हेतु बुधवार के दिन व्रत रखना चाहिए. गाय को हरी घास और हरी पत्तियां खिलानी चाहिए. ब्राह्मणों को दूध में पकाकर खीर भोजन करना चाहिए. बुध की दशा में सुधार के लिए विष्णु सहस्रनाम का जाप भी कल्याणकारी कहा गया है. 
रविवार को छोड़कर अन्य दिन नियमित तुलसी में जल देने से बुध की दशा में सुधार होता है. अनाथों एवं गरीब छात्रों की सहायता करने से बुध ग्रह से पीड़ित व्यक्तियों को लाभ मिलता है. मौसी, बहन, चाची बेटी के प्रति अच्छा व्यवहार बुध ग्रह की दशा से पीड़ित व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है.

    अपने घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाना चाहिए तथा निरन्तर उसकी देखभाल करनी चाहिए। बुधवार के दिन तुलसी पत्र का सेवन करना चाहिए।
    बुधवार के दिन हरे रंग की चूड़ियाँ हिजड़े को दान करनी चाहिए।
    हरी सब्जियाँ एवं हरा चारा गाय को खिलाना चाहिए।
    बुधवार के दिन गणेशजी के मंदिर में मूँग के लड्डुओं का भोग लगाएँ तथा बच्चों को बाँटें।
    घर में खंडित एवं फटी हुई धार्मिक पुस्तकें एवं ग्रंथ नहीं रखने चाहिए।
    अपने घर में कंटीले पौधे, झाड़ियाँ एवं वृक्ष नहीं लगाने चाहिए। फलदार पौधे लगाने से बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
    तोता पालने से भी बुध ग्रह की अनुकूलता बढ़ती है।
    बुध के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु बुधवार का दिन, बुध के नक्षत्र (आश्लेषा, ज्येष्ठा, रेवती) तथा बुध की होरा में अधिक शुभ होते हैं।


बृहस्पति के उपाय


दान :-
बृहस्पति के उपाय हेतु जिन वस्तुओं का दान करना चाहिए उनमें चीनी, केला, पीला वस्त्र, केशर, नमक, मिठाईयां, हल्दी, पीला फूल और भोजन उत्तम कहा गया है. इस ग्रह की शांति के लए बृहस्पति से सम्बन्धित रत्न का दान करना भी श्रेष्ठ होता है. दान करते समय आपको ध्यान रखना चाहिए कि दिन बृहस्पतिवार हो और सुबह का समय हो. दान किसी ब्राह्मण, गुरू अथवा पुरोहित को देना विशेष फलदायक होता है.
 
बृहस्पतिवार के दिन व्रत रखना चाहिए. कमज़ोर बृहस्पति वाले व्यक्तियों को केला और पीले रंग की मिठाईयां गरीबों, पंक्षियों विशेषकर कौओं को देना चाहिए. ब्राह्मणों एवं गरीबों को दही चावल खिलाना चाहिए. रविवार और बृहस्पतिवार को छोड़कर अन्य सभी दिन पीपल के जड़ को जल से सिंचना चाहिए. गुरू, पुरोहित और शिक्षकों में बृहस्पति का निवास होता है अत: इनकी सेवा से भी बृहस्पति के दुष्प्रभाव में कमी आती है. केला का सेवन और सोने वाले कमड़े में केला रखने से बृहस्पति से पीड़ित व्यक्तियों की कठिनाई बढ़ जाती है अत: इनसे बचना चाहिए।

    ऐसे व्यक्ति को अपने माता-पिता, गुरुजन एवं अन्य पूजनीय व्यक्तियों के प्रति आदर भाव रखना चाहिए तथा महत्त्वपूर्ण समयों पर इनका चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लेना चाहिए।
    सफेद चन्दन की लकड़ी को पत्थर पर घिसकर उसमें केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना चाहिए या टीका लगाना चाहिए।
    ऐसे व्यक्ति को मन्दिर में या किसी धर्म स्थल पर निःशुल्क सेवा करनी चाहिए।
    किसी भी मन्दिर या इबादत घर के सम्मुख से निकलने पर अपना सिर श्रद्धा से झुकाना चाहिए।
    ऐसे व्यक्ति को परस्त्री / परपुरुष से संबंध नहीं रखने चाहिए।
    गुरुवार के दिन मन्दिर में केले के पेड़ के सम्मुख गौघृत का दीपक जलाना चाहिए।
    गुरुवार के दिन आटे के लोयी में चने की दाल, गुड़ एवं पीसी हल्दी डालकर गाय को खिलानी चाहिए।
    गुरु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु गुरुवार का दिन, गुरु के नक्षत्र (पुनर्वसु, विशाखा, पूर्व-भाद्रपद) तथा गुरु की होरा में अधिक शुभ होते हैं।



शुक्र के उपाय

शुक्र ग्रहों में सबसे चमकीला है और प्रेम का प्रतीक है. इस ग्रह के पीड़ित होने पर आपको ग्रह शांति हेतु सफेद रंग का घोड़ा दान देना चाहिए. रंगीन वस्त्र, रेशमी कपड़े, घी, सुगंध, चीनी, खाद्य तेल, चंदन, कपूर का दान शुक्र ग्रह की विपरीत दशा में सुधार लाता है. शुक्र से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है. इन वस्तुओं का दान शुक्रवार के दिन संध्या काल में किसी युवती को देना उत्तम रहता है.शुक्र ग्रह से सम्बन्धित क्षेत्र में आपको परेशानी आ रही है तो इसके लिए आप शुक्रवार के दिन व्रत रखें. मिठाईयां एवं खीर कौओं और गरीबों को दें. ब्राह्मणों एवं गरीबों को घी भात खिलाएं. अपने भोजन में से एक हिस्सा निकालकर गाय को खिलाएं. शुक्र से सम्बन्धित वस्तुओं जैसे सुगंध, घी और सुगंधित तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. वस्त्रों के चुनाव में अधिक विचार नहीं करें.

    काली चींटियों को चीनी खिलानी चाहिए।
    शुक्रवार के दिन सफेद गाय को आटा खिलाना चाहिए।
    किसी काने व्यक्ति को सफेद वस्त्र एवं सफेद मिष्ठान्न का दान करना चाहिए।
    किसी महत्त्वपूर्ण कार्य के लिए जाते समय १० वर्ष से कम आयु की कन्या का चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेना चाहिए।
    अपने घर में सफेद पत्थर लगवाना चाहिए।
    किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकारना चाहिए।
    शुक्रवार के दिन गौ-दुग्ध से स्नान करना चाहिए।
    शुक्र के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शुक्रवार का दिन, शुक्र के नक्षत्र (भरणी, पूर्वा-फाल्गुनी, पुर्वाषाढ़ा) तथा शुक्र की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

शनि के उपाय

जिनकी कुण्डली में शनि कमज़ोर हैं या शनि पीड़ित है उन्हें काली गाय का दान करना चाहिए. काला वस्त्र, उड़द दाल, काला तिल, चमड़े का जूता, नमक, सरसों तेल, लोहा, खेती योग्य भूमि, बर्तन व अनाज का दान करना चाहिए. शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. 
 
शनि ग्रह की शांति के लिए दान देते समय ध्यान रखें कि संध्या काल हो और शनिवार का दिन हो तथा दान प्राप्त करने वाला व्यक्ति ग़रीब और वृद्ध हो.शनि के कोप से बचने हेतु व्यक्ति को शनिवार के दिन एवं शुक्रवार के दिन व्रत रखना चाहिए. लोहे के बर्तन में दही चावल और नमक मिलाकर भिखारियों और कौओं को देना चाहिए. रोटी पर नमक और सरसों तेल लगाकर कौआ को देना चाहिए. तिल और चावल पकाकर ब्राह्मण को खिलाना चाहिए. अपने भोजन में से कौए के लिए एक हिस्सा निकालकर उसे दें.  
शनि ग्रह से पीड़ित व्यक्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ, महामृत्युंजय मंत्र का जाप एवं शनिस्तोत्रम का पाठ भी बहुत लाभदायक होता है. शनि ग्रह के दुष्प्रभाव से बचाव हेतु गरीब, वृद्ध एवं कर्मचारियो के प्रति अच्छा व्यवहार रखें. मोर पंख धारण करने से भी शनि के दुष्प्रभाव में कमी आती है.

    शनिवार के दिन पीपल वृक्ष की जड़ पर तिल्ली के तेल का दीपक जलाएँ।
    शनिवार के दिन लोहे, चमड़े, लकड़ी की वस्तुएँ एवं किसी भी प्रकार का तेल नहीं खरीदना चाहिए।
    शनिवार के दिन बाल एवं दाढ़ी-मूँछ नही कटवाने चाहिए।
    भड्डरी को कड़वे तेल का दान करना चाहिए।
    भिखारी को उड़द की दाल की कचोरी खिलानी चाहिए।
    किसी दुःखी व्यक्ति के आँसू अपने हाथों से पोंछने चाहिए।
    घर में काला पत्थर लगवाना चाहिए।
    शनि के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, शनि के नक्षत्र (पुष्य, अनुराधा, उत्तरा-भाद्रपद) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ फल देता है।

क्या न करें :-

जो व्यक्ति शनि ग्रह से पीड़ित हैं उन्हें गरीबों, वृद्धों एवं नौकरों के प्रति अपमान जनक व्यवहार नहीं करना चाहिए. नमक और नमकीन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए, सरसों तेल से बनें पदार्थ, तिल और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए. शनिवार के दिन सेविंग नहीं करना चाहिए और जमीन पर नहीं सोना चाहिए.शनि से पीड़ित व्यक्ति के लिए काले घोड़े की नाल और नाव की कांटी से बनी अंगूठी भी काफी लाभप्रद होती है परंतु इसे किसी अच्छे पंडित से सलाह और पूजा के पश्चात ही धारण करना चाहिए. साढ़े साती से पीड़ित व्यक्तियों के लिए भी शनि का यह उपाय लाभप्रद है. शनि का यह उपाय शनि की सभी दशा में कारगर और लाभप्रद है

राहू  के उपाय

अपनी शक्ति के अनुसार संध्या को काले-नीले फूल, गोमेद, नारियल, मूली, सरसों, नीलम, कोयले, खोटे सिक्के, नीला वस्त्र किसी कोढ़ी को दान में देना चाहिए। राहु की शांति के लिए लोहे के हथियार, नीला वस्त्र, कम्बल, लोहे की चादर, तिल, सरसों तेल, विद्युत उपकरण, नारियल एवं मूली दान करना चाहिए. सफाई कर्मियों को लाल अनाज देने से भी राहु की शांति होती है. 
 
राहु से पीड़ित व्यक्ति को इस ग्रह से सम्बन्धित रत्न का दान करना चाहिए. राहु से पीड़ित व्यक्ति को शनिवार का व्रत करना चाहिए इससे राहु ग्रह का दुष्प्रभाव कम होता है. मीठी रोटी कौए को दें और ब्राह्मणों अथवा गरीबों को चावल और मांसहार करायें. राहु की दशा होने पर कुष्ट से पीड़ित व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए. गरीब व्यक्ति की कन्या की शादी करनी चाहिए. राहु की दशा से आप पीड़ित हैं तो अपने सिरहाने जौ रखकर सोयें और सुबह उनका दान कर दें इससे राहु की दशा शांत होगी.

    ऐसे व्यक्ति को अष्टधातु का कड़ा दाहिने हाथ में धारण करना चाहिए।
    हाथी दाँत का लाकेट गले में धारण करना चाहिए।
    अपने पास सफेद चन्दन अवश्य रखना चाहिए। सफेद चन्दन की माला भी धारण की जा सकती है।
    जमादार को तम्बाकू का दान करना चाहिए।
    दिन के संधिकाल में अर्थात् सूर्योदय या सूर्यास्त के समय कोई महत्त्वपूर्ण कार्य नही करना चाहिए।
    यदि किसी अन्य व्यक्ति के पास रुपया अटक गया हो, तो प्रातःकाल पक्षियों को दाना चुगाना चाहिए।
    झुठी कसम नही खानी चाहिए।
    राहु के दुष्प्रभाव निवारण के लिए किए जा रहे टोटकों हेतु शनिवार का दिन, राहु के नक्षत्र (आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा) तथा शनि की होरा में अधिक शुभ होते हैं।

क्या न करें :-

मदिरा और तम्बाकू के सेवन से राहु की दशा में विपरीत परिणाम मिलता है अत: इनसे दूरी बनाये रखना चाहिए. आप राहु की दशा से परेशान हैं तो संयुक्त परिवार से अलग होकर अपना जीवन यापन करें.

केतु के उपाय

किसी युवा व्यक्ति को केतु कपिला गाय, दुरंगा, कंबल, लहसुनिया, लोहा, तिल, तेल, सप्तधान्य शस्त्र, बकरा, नारियल, उड़द आदि का दान करने से केतु ग्रह की शांति होती है। ज्योतिषशास्त्र इसे अशुभ ग्रह मानता है अत: जिनकी कुण्डली में केतु की दशा चलती है उसे अशुभ परिणाम प्राप्त होते हैं. इसकी दशा होने पर शांति हेतु जो उपाय आप कर सकते हैं उनमें दान का स्थान प्रथम है. 
 
ज्योतिषशास्त्र कहता है केतु से पीड़ित व्यक्ति को बकरे का दान करना चाहिए. कम्बल, लोहे के बने हथियार, तिल, भूरे रंग की वस्तु केतु की दशा में दान करने से केतु का दुष्प्रभाव कम होता है.  गाय की बछिया, केतु से सम्बन्धित रत्न का दान भी उत्तम होता है. अगर केतु की दशा का फल संतान को भुगतना पड़ रहा है तो मंदिर में कम्बल का दान करना चाहिए.  केतु की दशा को शांत करने के लिए व्रत भी काफी लाभप्रद होता है. शनिवार एवं मंगलवार के दिन व्रत रखने से केतु की दशा शांत होती है. कुत्ते को आहार दें एवं ब्राह्मणों को भात खिलायें इससे भी केतु की दशा शांत होगी. किसी को अपने मन की बात नहीं बताएं एवं बुजुर्गों एवं संतों की सेवा करें यह केतु की दशा में राहत प्रदान करता है।




दशाफल निर्धारण के लिए कुछ बातें ध्‍यान रखने योग्‍य हैं -कितने वर्ष रह गयी इसके लिए सामान्‍य अनुपात का इस्‍तेमाल किया जाता है।

अध्याय 12

पिछली बार हमनें जाना था कि हर ग्रह की दशा की अवधि निश्चित है। जैसे सूर्य की छह साल, चंद्र की 10 साल, शनि की 19 साल आदि। कुल दशा अवधि 120 वर्ष की होती है। आपको मालूम है कि जन्‍म के समय चन्‍द्र जिस ग्रह के नक्षत्र में होता है, उस ग्रह से दशा प्रारम्‍भ होती है। दशा कितने वर्ष रह गयी इसके लिए सामान्‍य अनुपात का इस्‍तेमाल किया जाता है।
 
माना कि जन्‍म के समय चन्‍द्र कुम्‍भ राशि के 10 अंश पर था। हम पिछले बार की तालिका से जानते हैं कि कुम्‍भ की 6 अंश 40 कला से 20 अंश तक शतभिषा नक्षत्र होता है। अब अगर चन्‍द्र कुम्‍भ के 10 अंश पर है, इसका मतलब चन्‍द्र श‍तभिषा नक्षत्र की 3 अंश 20 कला पार कर चुका है और 10 अंश पार करना बाकी है। राहु की कुल दशा अवधि 18 वर्ष होती है। अब अनुपात के हिसाब से -
 
अगर 13 अंश 20 कला बराबर हैं 18 वर्ष के, तो
3 अंश 20 कला बराबर होंगे = 18 / 13 अंश 20 कला X 3 अंश 20 कला
= 4.5 वर्ष
= 4 वर्ष 6 माह

अत: हम कह सकते हैं कि जन्‍म के समय राहु की दशा 4 वर्ष 6 माह बीत चुकी थी। चंकि राहु की कुल दशा 18 वर्ष की होती है अत: 13 वर्ष 6 माह की दशा रह गई थी।


जन्‍म के समय बीत चुकी दशा को भुक्‍त दशा और रह गई दशा को भोग्‍य दशा (balance of dasa) कहते हैं। एक बार फिर बता दूं कि पंचाग आदि में विंशोत्‍तरी दशा की तालिकाएं दी हुई होती हैं अत: हाथ से गणना की आवश्‍यकता नहीं होती।

जैसा कि पहले बताया गया, हर ग्रह की महादशा में फिर से नव ग्रह की अन्‍तर्दशा होती हैं। हर अन्‍तर्दशा में फिर से नव ग्रह की प्रत्‍यन्‍तर्दशा और प्रत्‍यन्‍तर्दशा के अन्‍दर सूक्ष्‍म दशाएं होती हैं। जिस ग्रह की महादशा होती है, उसकी महादशा में सबसे पहले अन्‍तर्दशा उसी ग्रह की होती है। उसके बाद उस ग्रह की दशा आती है जो कि दशाक्रम में उसके बाद निर्धारित हा। उदाहरण के तौर पर, राहु की महादशा में सबसे पहले राहु की खुद की अन्‍तर्दशा आएगी। फिर गुरूवार की, फिर शनि की इत्‍या‍दि।

अन्‍तर्दशा की गणना भी सामान्‍य अनुपात से ही की जाती है। जैसे राहु की महादशा कुल 18 वर्ष की होती है। अत: राहु की महादशा में राहु की अन्‍तर्दशा 18 / 120 X 18 = 2.7 वर्ष यानि 2 वर्ष 8 माह 12 दिन की होगी। इसी प्रकार राहु में गुरु की अन्‍तर्दशा 18/ 120 X 16 = 2.4 यानि 2 वर्ष 4 माह 24 दिन की होगी।

इस गणना को ठीक से समझना आवश्यक है। इस बार के लिए बस इतना ही।

अध्याय 13
 
इस बार हम जानेंगे की दशाफल का निर्धारण कैसे करें। विंशोत्‍तरी दशा काल निर्धारण का अति महत्‍वपूर्ण औजार है। दशाफल अर्थात किस दशा में हमें क्‍या फल मिलेगा। दशाफल निर्धारण के लिए कुछ बातें ध्‍यान रखने योग्‍य हैं -

1- सर्वप्रथम तो यह कि किसी भी मनुष्‍य को वह ही फल मिल सकता है जो कि उसकी कुण्‍डली में निर्धारित हो। उदाहरण के तौर पर अगर किसी की कुण्‍डली में विवाह का योग नहीं है तो दशा कितनी भी विवाह देने वाली हो, विवाह नहीं हो सकता।

2- कितना फल मिलेगा यह ग्रह की शुभता और अशुभता पर निर्भर करेगा। ग्रहों की शुभता और अशुभता कैसे जानें इसकी चर्चा हम 'फलादेश के सामान्‍य नियम' शीर्षक के अन्‍तर्गत कर चुके हैं, जहां हमनें 15 नियम दिए थे। उदाहरण के तौर पर अगर किसी दशा में नौकरी मिलने का योग है और दशा का स्‍वामी सभी 15 दिए हुए नियमों के हिसाब से शुभ है तो नौकरी बहुत अच्‍छे वेतन की मिलेगी। ग्रह शुभ नहीं है तो नौकरी मिली भी तो तनख्‍वाह अच्‍छी नहीं होगी।

3- कोई भी दशा पूरी तरह से अच्‍छी या बुरी नहीं होती है। जैसे किसी व्‍यक्ति को किसी दशा में बहुत अच्‍छी नौकरी मिलती है परन्‍तु उसके पिता की मृत्‍यु हो जाती है तो दशा को अच्‍छा कहेंगे या बुरा? इसलिये दशा को अच्‍छा या बुरा मानकर फलादेश करने की बजाय यह देखना चाहिए कि उस दशा में क्‍या क्‍या फल मिल सकते हैं।

किसी दशा में क्‍या फल मिलेगा?

दशाफल महादशा, अन्‍तर्दशा और प्रत्‍यन्‍तर्दशा स्‍वामी ग्रहों पर निर्भर करता है। ग्रहों कि निम्‍न स्थितियों को देखना चाहिए और फिर मिलाजुला कर फल कहना चाहिए -

1- ग्रह किस भाव में बैठा है। ग्रह उस भाव का फल देते हैं जहां वे बैठै होते हैं। यानी अगर कोई ग्रह सप्‍तम भाव में स्थित है और जातक की विवाह की आयु है तो उस ग्रह की दशा विवाह दे सकती है, यदि उसकी कुण्‍डली में विवाह का योग है। 

2- ग्रह अपने कारकत्‍व के हिसाब से भी फल देते हैं। जैस सूर्य सरकारी नौकरी का कारक है अत: सूर्य की दशा में सरकारी नौकरी मिल सकती है। इसी तरह शुक्र विवाह का कारक है। समान्‍यत: देखा गया है कि दशा में भाव के कारकत्‍व ग्रह के कारकत्‍व से ज्‍यादा मिलते हैं।

3- ग्रह किन ग्रहों को देख रहा है और किन ग्रहों से दृष्‍ट है। दृष्टि का असर भी ग्रहों की दशा के समय मिलता है। दशा के समय दृष्‍ट ग्रहों असर भी मिला हुआ होगा। 


4- सबसे महत्‍वपर्ण और अक्‍सर भूला जाने वाला तथ्‍य यह है कि ग्रह अपने नक्षत्र स्‍वामी से बहुत अधिक प्रभावित रहता है। ग्रह वह सभी फल भी देता है जो उपरोक्‍त तीन बिन्‍दुओं के आधार पर ग्रह का नक्षत्र स्‍वामी देगा। उदाहरण के तौर पर अगर को ग्रह 'अ' किसी ग्रह 'ब' के नक्षत्र में है और ग्रह 'ब' सप्‍तम भाव में बैठा है। ऐसी स्थिति में ग्रह 'अ' कि दशा में भी विवाह हो सकता है, क्‍योंकि सप्‍तम भाव विवाह का स्‍थान है। 

5- राहु और केतु उन ग्रहों का फल देते हैं जिनके साथ वे बैठे होते हैं और दृष्टि आदि से प्रभावित होते हैं। 

6- महादशा का स्‍वामी ग्रह अपनी अन्‍तर्दशा में अपने फल नहीं देता। इसके स्‍थान पर वह पूर्व अन्‍तर्दशा के स्‍वयं के अनुसार संशोधित फल देता है। 

7- उस अन्‍तर्दशा में महादशा से संबन्धित सामान्‍यत: शुभ फल नहीं मिलते जिस अन्‍तर्दशा का स्‍वामी महादशा के स्‍वामी से 6, 8, या 12 वें स्‍थान में स्थित हो। 
 
8- अंतर्दशा में सिर्फ वही फल मिल सकते हैं जो कि महादशा दे सके। इसी तरह प्रत्‍यन्‍तर्दशा में वही फल मिल सकते हैं जो उसकी अन्‍तर्दशा दे सके।


 

फलादेश के सामान्य नियम :- सफलता और समृद्धि के योग:-  किसी कुण्‍डली की संभावना निम्‍न तथ्‍यों से पता लगाई जा सकती है  14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं - ज्‍योतिष में किसी भी घटना का कालनिर्णय मुख्‍यत: दशा और गोचर के आधार पर किया जाता है।

अध्याय 9

फलादेश के सामान्य नियम :-
यह जानना बहुत जरूरी है कि कोई ग्रह जातक को क्या फल देगा। कोई ग्रह कैसा फल देगा, वह उसकी कुण्डली में स्थिति, युति एवं दृष्टि आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह जितना ज्यादा शुभ होगा, अपने कारकत्व को और जिस भाव में वह स्थित है, उसके कारकत्वों को उतना ही अधिक दे पाएगा। नीचे कुछ सामान्य नियम दिए जा रहे हैं, जिससे पता चलेगा कि कोई ग्रह शुभ है या अशुभ। शुभता ग्रह के बल में वृद्धि करेगी और अशुभता ग्रह के बल में कमी करेगी।
 
नियम 1 - जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा। इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा।
 
नियम 2 - जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है।
 
नियम 3 - जो ग्रह अपने मित्र ग्रहों के साथ या मध्य हो वह शुभ फलदायक होता है। मित्रों के मध्य होने को मलतब यह है कि उस राशि से, जहां वह ग्रह स्थित है, अगली और पिछली राशि में मित्र ग्रह स्थित हैं।
 
नियम 4 - जो ग्रह अपनी नीच राशि से उच्च राशि की ओर भ्रमण करे और वक्री न हो तो शुभ फल देगा।
 
नियम 5 - जो ग्रह लग्नेहश का मित्र हो।
 
नियम 6 - त्रिकोण के स्वा‍मी सदा शुभ फल देते हैं।
 
नियम 7 - केन्द्र का स्वामी शुभ ग्रह अपनी शुभता छोड़ देता है और अशुभ ग्रह अपनी अशुभता छोड़ देता है।
 
नियम 8 - क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं।
 
नियम 9 - उपाच्य भावों (1, 3, 6, 10, 11) में ग्रह के कारकत्वत में वृद्धि होती है।
 
नियम 10 - दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं।
 
नियम 11 - शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं।
 
नियम 12 - पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभफलदायक और अमावस्या के पास का चंद्र अशुभफलदायक होता है।

नियम 13 - बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं।

नियम 14 - सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं।
 

इन सभी नियम के परिणाम को मिलाकर हम जान सकते हैं कि कोई ग्रह अपना और स्थित भाव का फल दे पाएगा कि नहींय़ जैसा कि उपर बताया गया शुभ ग्रह अपने कारकत्व को देने में सक्षम होता है परन्तु अशुभ ग्रह अपने कारकत्व को नहीं दे पाता।



अध्याय 10

सफलता और समृद्धि के योग:- किसी कुण्‍डली में क्‍या संभावनाएं हैं, यह ज्‍योतिष में योगों से देखा जाता है। भारतीय ज्‍योतिष में हजारों योगों का वर्णन है जो कि ग्रह, राशि और भावों इत्‍यादि के मिलने से बनते हैं। हम उन सारे योगों का वर्णन न करके, सिर्फ कुछ महत्‍वपूर्ण तथ्‍यों का वर्णन करेंगे जिससे हमें पता चलेगा कि जातक कितना सफल और समृद्ध होगा। सफतला, समृद्धि और खुशहाली को मैं 'संभावना' कहूंगा।

किसी कुण्‍डली की संभावना निम्‍न तथ्‍यों से पता लगाई जा सकती है
1- लग्‍न की शक्ति
2- चन्‍द्र की शक्ति
3- सूर्य की शक्ति
4- दशम भाव की शक्ति
5- योग

लग्‍न, सूर्य, चंद्र और दशम भाव की शक्ति पहले दिए हुए 14 नियमों के आधार पर निर्धारित की जा सकती है। योग इस प्रकार हैं -

योगकारक ग्रह:-
सूर्य और चंन्‍द्र को छोडकर हर ग्रह दो राशियों का स्‍वामी होता हैं। अगर किसी कुण्‍डली में कोई ग्रह एक साथ केन्‍द्र और त्रिकोण का स्‍वामी हो जाए तो उसे योगकारक ग्रह कहते हैं। योगकारक ग्रह उत्‍तम फल देते हैं और कुण्‍डली की संभावना को भी बढाते हैं।

उदाहरण कुम्‍भ लग्‍न की कुण्‍डली में शुक्र चतुर्थ भाव और नवम भाव का स्‍वामी है। चतुर्थ केन्‍द्र स्‍थान होता है और नवम त्रिकोण स्‍थान होता है अत: शुक्र उदाहरण कुण्‍डली में एक साथ केन्‍द्र और त्रिकोण का स्‍वामी होने से योगकारक हो गया है। अत: उदाहरण कुण्‍डली में शुक्र सामान्‍यत: शुभ फल देगा यदि उसपर कोई नकारात्‍मक प्रभाव नहीं है।

राजयोग:-
अगर कोई केन्‍द्र का स्‍वामी किसी त्रिकोण के स्‍वामी से सम्‍बन्‍ध बनाता है तो उसे राजयोग कहते हैं। राजयोग शब्‍द का प्रयोग ज्‍योतिष में कई अन्‍य योगों के लिए भी किया जाता हैं अत: केन्‍्द्र-त्रिकोण स्‍वा‍मियों के सम्‍बन्‍ध को पारा‍शरीय राजयोग भी कह दिया जाता है। दो ग्रहों के बीच राजयोग के लिए निम्‍न सम्‍बन्‍ध देखे जाते हैं -
1 युति
2 दृष्टि
3 परिवर्तन

युति और दृष्टि के बारे में हम पहले ही बात कर चुके हैं। परिवर्तन का मतलब राशि परिवर्तन से है। उदाहरण के तौर पर सूर्य अगर च्ंद्र की राशि कर्क में हो और चन्‍द्र सूर्य की राशि सिंह में हो तो इसे सूर्य और चन्‍द्र के बीच परिवर्तन सम्‍बन्‍ध कहा जाएगा।

धनयोग:-
एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह धन प्रदायक भाव हैं। अगर इनके स्‍वामियों में युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध बनता है तो इस सम्‍बन्‍ध को धनयोगा कहा जाता है।

दरिद्र योग:-
अगर किसी भी भाव का युति, दृष्टि या परिवर्तन सम्‍बन्‍ध तीन, छ:, आठ, बारह भाव से हो जाता है तो उस भाव के कारकत्‍व नष्‍ट हो जाते हैं। अगर तीन, छ:, आठ, बारह का यह सम्‍बन्‍ध धन प्रदायक भाव (एक, दो, पांच, नौ और ग्‍यारह) से हो जाता है तो यह दरिद्र योग कहलाता है।

जिस कुण्‍डली में जितने ज्‍यादा राजयोग और धनयोग होंगे और जितने कम दरिद्र योग होंगे वह जातक उतना ही समृद्ध होगा।

अध्याय 11
 
कालनिर्णय

ज्‍योतिष में किसी भी घटना का कालनिर्णय मुख्‍यत: दशा और गोचर के आधार पर किया जाता है। दशा और गोचर में सामान्‍यत: दशा को ज्‍यादा महत्‍व दिया जाता है। वैसे तो दशाएं भी कई होती हैं परन्‍तु हम सबसे प्रचलित विंशोत्‍तरी दशा की चर्चा करेंगे और जानेंगे कि विंशोत्‍तरी दशा का प्रयोग घटना के काल निर्णय में कैसे किया जाए।

विंशोत्‍तरी दशा नक्षत्र पर आधारित है। जन्‍म के समय चन्‍द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र के स्‍वामी से दशा प्रारम्‍भ होती है। दशाक्रम सदैव इस प्रकार रहता है -
सूर्य, चन्‍द्र, मंगल, राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र।

जैसा कि विदित है कि दशा क्रम ग्रहों के सामान्‍य क्रम से अलग है और नक्षत्रो पर आधारित है, अत: इसे याद कर लेना चाहिए। माना कि जन्‍म के समय चन्‍द्र शतभिषा नक्षत्र में था। पिछली बार हमने जाना था कि शतभिषा नक्षत्र का स्‍वामी राहु है अत: दशाक्रम राहु से प्रारम्‍भ होकर इस प्रकार होगा -

राहु, गुरु, शनि, बुध, केतु, शुक्र, सूर्य, चन्‍द्र, मंगल

कुल दशा अवधि 120 वर्ष की होती है। हर ग्रह की उपरोक्‍त दशा को महादशा भी कहते हैं और ग्रह की महादशा में फिर से नव ग्रह की अन्‍तर्दशा होती हैं। इसी प्रकार हर अन्‍तर्दशा में फिर से नव ग्रह की प्रत्‍यन्‍तर्दशा होती हैं और प्रत्‍यन्‍तर्दशा के अन्‍दर सूक्ष्‍म दशाएं होती हैं।

जिस प्रकार ग्रहों का दशा क्रम निश्चित है उसी प्रकार हर ग्रह की दशा की अवधि भी निश्चित है जो कि इस प्रकार है

ग्रह दशा की अवधि (वर्षों में)
सूर्य 6
चन्‍द्र 10
मंगल 7
राहु 18
गुरु 16
शनि 19
बुध 17
केतु 7
शुक्र 20
कुल 120
 
 आगे हम यह बताएंगे कि दशा की गणना कैसे की जाती है। हालांकि, ज्‍यादातर समय दशा की गणना की आवश्‍यकता नहीं होती है इसलिए अगर गणना समझ में न आए तो भी चिन्‍ता की जरूरत नहीं है। आज कल जन्‍म पत्रिकाएं कम्‍प्‍यूटर से बनती हैं और उसमें विंशोत्‍तरी दशा गणना दी ही होती है। सभी पंचागों में भी गणना के लिए विंशोत्‍तरी दशा की तालिकांए दी हुई होती हैं।

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