अध्याय 1
ज्योतिष सीखने की इच्छा अधिकतर लोगों में होती है। लेकिन उनके सामने समस्या यह होती है कि ज्योतिष की शुरूआत कहाँ से की जाये?
कुछ जिज्ञासु मेहनत करके किसी ज्यातिषी को पढ़ाने के लिये राज़ी तो कर लेते हैं, लेकिन गुरूजी कुछ इस तरह ज्योतिष पढ़ाते हैं कि जिज्ञासु ज्योतिष सीखने की बजाय भाग खड़े होते हैं। बहुत से पढ़ाने वाले ज्योतिष की शुरुआत कुण्डली-निर्माण से करते हैं। ज़्यादातर जिज्ञासु कुण्डली-निर्माण की गणित से ही घबरा जाते हैं। वहीं बचे-खुचे “भयात/भभोत” जैसे मुश्किल शब्द सुनकर भाग खड़े होते हैं।
अगर कुछ छोटी-छोटी बातों पर ग़ौर किया जाए, तो आसानी से ज्योतिष की गहराइयों में उतरा जा सकता है। ज्योतिष सीखने के इच्छुक नये विद्यार्थियों को कुछ बातें ध्यान में रखनी चाहिए-
- शुरूआत में थोड़ा-थोड़ा पढ़ें।
- जब तक पहला पाठ समझ में न आये, दूसरे पाठ या पुस्तक पर न जायें।
- जो कुछ भी पढ़ें, उसे आत्मसात कर लें।
- बिना गुरू-आज्ञा या मार्गदर्शक की सलाह के अन्य ज्योतिष पुस्तकें न पढ़ें।
- शुरूआती दौर में कुण्डली-निर्माण की ओर ध्यान न लगायें, बल्कि कुण्डली के विश्लेषण पर ध्यान दें।
- शुरूआती दौर में अपने मित्रों और रिश्तेदारों से कुण्डलियाँ मांगे, उनका विश्लेषण करें।
- जहाँ तक हो सके हिन्दी के साथ-साथ ज्योतिष की अंग्रेज़ी की शब्दावली को भी समझें।
ज्योतिष के मुख्य दो विभाग हैं - गणित और फलित। गणित के अन्दर मुख्य रूप से जन्म कुण्डली बनाना आता है। इसमें समय और स्थान के हिसाब से ग्रहों की स्थिति की गणना की जाती है। दूसरी ओर, फलित विभाग में उन गणनाओं के आधार पर भविष्यफल बताया जाता है। इस शृंखला में हम ज्योतिष के गणित वाले हिस्से की चर्चा बाद में करेंगे और पहले फलित ज्योतिष पर ध्यान लगाएंगे। किसी बच्चे के जन्म के समय अन्तरिक्ष में ग्रहों की स्थिति का एक नक्शा बनाकर रख लिया जाता है इस नक्शे केा जन्म कुण्डली कहते हैं। आजकल बाज़ार में बहुत-से कम्प्यूटर सॉफ़्टवेयर उपलब्ध हैं और उन्हे जन्म कुण्डली निर्माण और अन्य गणनाओं के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
पूरी ज्योतिष नौ ग्रहों, बारह राशियों, सत्ताईस नक्षत्रों और बारह भावों पर टिकी हुई है। सारे भविष्यफल का मूल आधार इनका आपस में संयोग है। नौ ग्रह इस प्रकार हैं -
ग्रह | अन्य नाम | अंग्रेजी नाम |
सूर्य | रवि | सन |
चंद्र | सोम | मून |
मंगल | कुज | मार्स |
बुध | मरकरी | |
गुरू | बृहस्पति | ज्यूपिटर |
शुक्र | भार्गव | वीनस |
शनि | मंद | सैटर्न |
राहु | नॉर्थ नोड | |
केतु | साउथ नोड |
आधुनिक खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) के हिसाब से सूर्य तारा और चन्द्रमा उपग्रह है, लेकिन भारतीय ज्योतिष में इन्हें ग्रहों में शामिल किया गया है। राहु और केतु गणितीय बिन्दु मात्र हैं और इन्हें भी भारतीय ज्योतिष में ग्रह का दर्जा हासिल है।
भारतीय ज्योतिष पृथ्वी को केन्द्र में मानकर चलती है। राशिचक्र वह वृत्त है जिसपर नौ ग्रह घूमते हुए मालूम होते हैं। इस राशिचक्र को अगर बारह भागों में बांटा जाये, तो हर एक भाग को एक राशि कहते हैं। इन बारह राशियों के नाम हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन। इसी तरह जब राशिचक्र को सत्ताईस भागों में बांटा जाता है, तब हर एक भाग को नक्षत्र कहते हैं। हम नक्षत्रों की चर्चा आने वाले समय में करेंगे।
एक वृत्त को गणित में 360 कलाओं (डिग्री) में बाँटा जाता है। इसलिए एक राशि, जो राशिचक्र का बारहवाँ भाग है, 30 कलाओं की हुई। फ़िलहाल ज़्यादा गणित में जाने की बजाय बस इतना जानना काफी होगा कि हर राशि 30 कलाओं की होती है।
हर राशि का मालिक एक ग्रह होता है जो इस प्रकार हैं -
राशि | अंग्रेजी नाम | मालिक ग्रह |
मेष | एरीज़ | मंगल |
वृषभ | टॉरस | शुक्र |
मिथुन | जैमिनी | बुध |
कर्क | कैंसर | चन्द्र |
सिंह | लियो | सूर्य |
कन्या | वरगो | बुध |
तुला | लिबरा | शुक्र |
वृश्चिक | स्कॉर्पियो | मंगल |
धनु | सैजीटेरियस | गुरू |
मकर | कैप्रीकॉर्न | शनि |
कुम्भ | एक्वेरियस | शनि |
मीन | पाइसेज़ | गुरू |
इस अध्याय में बस यहीं तक। लेख के अगले क्रम में जानेंगे कि राशि व ग्रहों के क्या स्वाभाव हैं और उन्हें भविष्यकथन के लिए कैसे उपयोग किया जा सकता है।
अध्याय 2
पिछले अध्याय में हमनें राशि, ग्रह एवं राशि स्वामियों के बारे में जाना। वह अत्यन्त ही महत्वपूर्ण सूचना थी और उसे कण्ठस्थ करने की कोशिश करें। इस बार हम ग्रह एवं राशियों के कुछ वर्गीकरण को जानेंगे जो कि फलित ज्योतिष के लिए अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हैं।
पहला वर्गीकरण शुभ ग्रह और पाप ग्रह का इस प्रकार है:-
साधारणत: चन्द्र एवं बुध को सदैव ही शुभ नहीं गिना जाता। पूर्ण चन्द्र अर्थात पूर्णिमा के पास का चन्द्र शुभ एवं अमावस्या के पास का चन्द्र शुभ नहीं गिना जाता। इसी प्रकार बुध अगर शुभ ग्रह के साथ हो तो शुभ होता है और यदि पापी ग्रह के साथ हो तो पापी हो जाता है।
यह ध्यान रखने वाली बात है कि सभी पापी ग्रह सदैव ही बुरा फल नहीं देते। न ही सभी शुभ ग्रह सदैव ही शुभ फल देते हैं। अच्छा या बुरा फल कई अन्य बातों जैसे ग्रह का स्वामित्व, ग्रह की राशि स्थिति, दृष्टियों इत्यादि पर भी निर्भर करता है जिसकी चर्चा हम आगे करेंगे।
जैसा कि उपर कहा गया एक ग्रह का अच्छा या बुरा फल कई अन्य बातों पर निर्भर करता है और उनमें से एक है ग्रह की राशि में स्थिति। कोई भी ग्रह सामान्यत अपनी उच्च राशि, मित्र राशि, एवं खुद की राशि में अच्छा फल देते हैं। इसके विपरीत ग्रह अपनी नीच राशि और शत्रु राशि में बुरा फल देते हैं।
ग्रहों की उच्चादि राशि स्थिति इस प्रकार है -
ग्रह
|
उच्च राशि
|
नीच राशि
|
स्वग्रह राशि
|
1
|
सूर्य,मेष
|
तुला
|
सिंह
|
2
|
चन्द्रमा, वृषभ
|
वृश्चिक
|
कर्क
|
3
|
मंगल, मकर
|
कर्क
|
मेष, वृश्चिक
|
4
|
बुध, कन्या
|
मीन
|
मिथुन, कन्या
|
5
|
गुरू, कर्क
|
मकर
|
धनु, मीन
|
6
|
शुक्र, मीन
|
कन्या
|
वृषभ, तुला
|
7
| शनि, तुला | मेष | मकर, कुम्भ |
8
| राहु, धनु | मिथुन | |
9
| केतु मिथुन | धनु |
ऊपर की तालिका में कुछ ध्यान देने वाले बिन्दु इस प्रकार हैं - 1. ग्रह की उच्च राशि और नीच राशि एक दूसरे से सप्तम होती हैं। उदाहरणार्थ सूर्य मेष में उच्च का होता है जो कि राशि चक्र की पहली राशि है और तुला में नीच होता है जो कि राशि चक्र की सातवीं राशि है।
2. सूर्य और चन्द्र सिर्फ एक राशि के स्वामी हैं। राहु एवं केतु किसी भी राशि के स्वामी नहीं हैं। अन्य ग्रह दो-दो राशियों के स्वामी हैं।
3. राहु एवं केतु की अपनी कोई राशि नहीं होती। राहु-केतु की उच्च एवं नीच राशियां भी सभी ज्योतिषी प्रयोग नहीं करते हैं।
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